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छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ भाग - 3 (61 से 90)

६१. थोर खाये बहुत डेकारे।
थोड़ा सा ही खाकर ज़ोर ज़ोर से डकार लेना। अर्थात थोड़ा से ही काम करके उसके बारे में ज्यादा बोलना।

६२. आप रुप भोजन पर रुप सिंगार।
भोजन करे तो अपनी पसन्द के मुताफिक। पर श्रृंगार करे तो दूसरों की रुची के अनुसार।

६३. तोर गारी मोर कार के बारी।
इसका अर्थ कि जब किसी से मोहब्बत होता है। उसका हर चीज़ अच्छा लगता है। उसकी गाली भी अच्छी लगती है। जैसे कि कान की बाली अच्छी लगती है। गाली, कान की बाली जैसे है।

६४. चार ठन बर्तन रइथे तिहां ठिक्की लगावे करथे।
जहाँ कई लोग इकट्ठे रहते है, वहाँं झगड़ा होना स्वाभाविक है। जैसे कुछ बर्तने एक साथ जहाँ रक्खी जाती, वहाँ एक दूसरे से टक्कर हो ही जाती है।

६५. जेखर जइसे दाई ददा
तेखर तइसे लइका।
जेखर जैसे धर दुवार।
तेखर तइसे फरिका।
बच्चें अपने माता पिता जैसे होते है। जैसे मा पिता, वैसे ही बच्चें। ठीक उसी तरह, जिस तरह धर का दरवाज़ा धर के संदर्भ में ही
बनती है।

६६. पाप ह छान्ही मां चढ़के नाचथे।
अपराध कभी छिपी नहीं रहती। पाप जो है, वह तो छत पर जाकर नाचता रहता है।

६७. खाय तौन ओंठ चबाय नई खाय तौन जीभ चाटय।
कोई खाने की चीज़ जो बहुत ही खराब है स्वाद में, उसे जो खाते है, वे पछताते है। और जो नहीं खाते है, वे भी न खाने के कारण पछताते है।

६८. भागे मछरी जांध असन मोंठा इसका अर्थ है कि जो चीज़ हमें नहीं मिलती, वह चीज़ हमें ज्यादा मुल्यवान लगती है। जो मछली हम पकड़
नहीं पाते। वह हमें जांध जैसे मोटी लगती है। ये हाना अगुंर खट्टे है के विपरीत भाव व्यक्त करती है।

६९. यहां घर उहाँ घर, पाँव पर विदा कर। लड़कियों की शादी के वक्त ये कही जाती है - कि ये भी घर है, वह भी घर है जहाँ लड़की जा रही है। इसीलिए प्रणाम करके लड़की को विदा
करो और दुखी मत हो।

७०. अंधरी बर दई सहाय
यह हाना अंधे व्यक्तियों के लिए कही जाती है कि उनके लिए भगवान हमेशा सहायह है।

७१. अंधरा खोजै दू आंखी।
अंधे व्यक्ति हमेशा आँखे खोजती है। अर्थात
हर कोई अपनी मनचाही चीज़ ढुंडती रहती है।

७२. खाके मूत सूते बाऊँ
काहे बैद बसावै गाऊँ।
यह हाना स्वास्थ के बारे में है और इससे पता
चलता है कि लोग कितने ज्ञानी होते है। खाना खाने के बाद जो व्यक्ति पिशाब करता है और
बायी करवट सोता है, वह व्यक्ति हमेशा निरोग रहता है। और निरोग रहने के कारण वैध की जरुरत ही नहीं होती।

७३. रोग बढ़े भोग ले
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति भोग विलास में अपने आप को डुबा देता है वह व्यक्ति का रोग बड़ जाता है। इस हाना के माध्यम से लोगों को भोग विलास से दूर रहने के लिए कहा गया है।

७४. बिहनियां उठि जे रोज नाहय
ओला देखि बैद पछताय।
जो व्यक्ति रोज़ नहाता है उसे देखकर बैद पछताता है क्योंकि रोज़ नहाने के कारण उसका स्वास्थ निरोग रहता है।

७५. बासी पानी जे पिये
ते नित हर्रा खाय।
मोटी दतुअन जे करे
ते धर बैद न जाय।
ये हाना भी स्वास्थ के बारे में है इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति रोज सुबह बासी पानी पीता है, हरी खाता है और मोटी दातुन से दन्त मन्जन करता है, उसके घर में कभी बैध को बुलाना नहीं पड़ेगा।

७६. जेवन बिगड़ गे
तौन दिन बिगड़े गे।
जिस दिन भोजन ठीक से नहीं बनती है, बिगड़ जाती है, वह सारा दिन भी बिगड़ जाता है। मन उस वक्त खुश रहता है जब खाना स्वादिष्ट बनती है।

७७. महतारी के परसे, अऊ मधा के बरसे।
यह हाना माता के ममता के बारे में है। जिस तरह
मधा नक्षत्र में जब बारिस होती है, तब पृथ्वी तृप्त होती है, उसी तरह माता जब खाना परोसती है, बच्चे तब तृप्त होते है।

७८. दाई के मन गाय असन बेटा कसाई। यह हाना मा के स्नेह के बारे में है। संतान अगर कु हो, तब भी मा का स्नेह कम नहीं होता।

७९. महतारी के पेट, कुम्हार के आवा।
यहाँ मा के साथ कूम्हार की तुलना करते हुये कहा गया है मा लड़का या लड़की किसी को भी जन्म दे सकती है। जिस तरह कुम्हार किसी भी तरह का बर्तन बना सकता है।

८०. दाई के कमरछड़ अउ डऊकी के तीजा।
यह हाना स्रीयों के व्रत के बारे में है जो लड़कों के लिए रख जाता है। जैसे माताए कमरछठ का
व्रत रखती है ताकि बेटा दीर्घायु हो, स्रियां तीजा का व्रत रखती है ताकि सुहागन बनी रहे।

८१. दाई मेरे घिरा बर
घिया मरे पिया बर।
माता अपनी बेटी के लिए चिन्ता कर रही है और चिन्ता से मर रही है। उधर बेटी अपने पति के लिए चिन्ता कर रही है।

८२. दाई देखे ठऊरी डऊकी देखे मोटरी।
यह पत्नी पर व्यंग है। माताऐं हमेशा अपने
संतान का स्वास्थ के बारे में सोचती है। पत्नी पति का कमाई या धन के बारे में सोचती
हैं।

८३. बिआवत दुख
बिहावत दुख।
यह हाना बेटी के बारे मेंम छत्तीसगढ़ में कहा जाता है। कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।

८४. घर देख बहुरिया निखारे।
इस हाना का अर्थ है कि शादी के बाद लड़की जिस घर में जाती है बहु बनकर, इसी घर में ढ़ल जाती है, उसी के जैसे हो जाती है।

८५. घर द्वार तोर बहुरिया
देहरी मां पांव इन देहा।
इसका अर्थ है कि बहु, यह घर द्वार तुम्हारा है पर घर के दरवाजे पर पैर नहीं रखों। अर्थात बहु के स्वाधीनता को छीन ले रही है।

८६. सास न ननदा घर मां अनन्दा।
सास बहु के जब तनावपुर्ण रिश्ता होता उसी को
संकेत देते हुये कह रहे है कि जिस घर में सास ननद नहीं है, उस घर में बहुएं आनन्द से रहती है।

८७. जेखर घर डौकी सियान
तेखर मरे बिहान।
इस हाना का अर्थ है कि जिस घर में पत्नी
चालाकी करती है, उस घर का पति अधमरा
सा हो जाता है।

८८. रांड़ी के कुकरी
राजा के हाथी
दुनों एक बरोबर।
जब गरीब विधवा औरत एक मुर्गी चोरी करती है और राजा एक हाथी चोरी करता है तो दोनों एक बराबर है।

८९. सऊत के बने मउत।
सौत पर ये हाना है कि सौत मृत्यु का कारण
बनती है।

९०. मरे सौत सताये
काठ के ननद बिजराये।
सौज जो मर चुकी है, वह भी सताती है और काठ की ननद भी जीभ दिखाती है।

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