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रतनपुर - तालाबों का शहर, छ. ग. की पहली राजधानी

●रतनपुर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर ज़िले में स्थित है। यह बिलासपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

●रतनपुर विभिन्न राजवंशों के शासकों द्वारा लाये गए विशाल ऐतिहासिक बदलावों का साक्षी रहा है। यहाँ प्रवेश करते ही हैहय राजवंश के बाबा भैरवनाथ क्षेत्रपाल सिंह की एक नौ फुट लंबी मूर्ति देखने को मिलती है।

●मंदिरों की संख्या के कारण स्थानीय रूप से इस स्थान को छोटी काशी भी कहा जाता है। यह स्थान दुल्हरा नदी के तट पर है।

●रतनपुर छत्तीसगढ़ के हैहय नरेशों की प्राचीन राजधानी है। 11वीं शती ई. के प्रारंभिक काल से ही प्राचीन चेदि राज्य के दो भाग हो गये थे- 'पश्चिमी चेदि', जिसकी राजधानी त्रिपुरी में थी और
'पूर्वी चेदि' या 'महाकोसल', जिसकी राजधानी
रत्नपुर थी।

●कहा जाता है कि रत्नपुर में पौराणिक राजा
मयूरध्वज की राजधानी थी। छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजाओं का बनवाया हुआ एक दुर्ग भी
यहां स्थित है। रत्नपुर में अनेक प्राचीन मंदिरों के
अवशेष हैं।

●रतनपुर और रायपुर राज्य क्रमशः शिवनाथ के उत्तर तथा दक्षिण में स्थित थे। प्रत्येक राज्य में स्पष्ट और निश्चित रूप से अठारह-अठारह ही गढ़ होते थे। गढ़ों की संख्या अठारह ही क्यों रखी गई थी, इसका निश्चित पता तो नहीं है, किन्तु रतनपुर से सन 1114 ई. के प्राप्त एक उल्लेख के अनुसार चेदि के हैहय वंशी राजा कोकल्लदेव के अठारह पुत्र थे और उन्होंने
अपने राज्य को अठारह हिस्सों में बाँट कर अपने पुत्रों को दिया था। सम्भवतः उसी वंश परंपरा की स्मृति बनाये रखने के लिये राज्य को अठारह गढ़ों में बाँटा जाता था।

●प्रत्येक गढ़ में सात ताल्लुके और प्रत्येक ताल्लुके में कम से कम बारह ग्राम होते थे। इस प्रकार प्रत्येक गढ़ में कम से कम चौरासी ग्राम होना अनिवार्य था। ताल्लुके में ग्रामों की संख्या
चौरासी से अधिक तो हो सकती थी, किन्तु
चौरासी से कम कदापि नहीं हो सकती
थी।

●चूँकि राज्य सूर्यवंशियों का था, अतः सूर्य की सात किरणों तथा बारह राशियों को ध्यान में रखकर ताल्लुकों और गाँवों की संख्या क्रमशः सात और कम से कम बारह रखी गईं थी। इस प्रकार सर्वत्र सूर्य देवता का प्रताप झलकता था।

●महामाया मंदिर रतनपुर में 'महामाया मंदिर' बहुत प्रसिद्ध है और राज्य भर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। कलचुरियों के राजा रतनसेन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यहाँ पर तालाब व उसके तट पर स्थित कुछ प्राचीन मंदिर भी हैं।

●'बुद्ध महादेव', 'रत्नेश्वर महादेव मंदिर' और 'लक्ष्मी मंदिर' रतनपुर के अन्य मंदिर हैं।

●रतनपुर में एक प्राचीन दुर्ग भी है, जो एक
महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। दुर्ग अभी भी अच्छी स्थिति में है और पर्यटक यहां पर आकर इतिहास के बारे में जानकारियां बटोर सकते हैं।

●गणेश गेट काफ़ी लुभावना है। गंगा-यमुना नदियों की मूर्तियों के अलावा गेट पर एक प्राचीन पत्थर की मूर्ति क़िले के सबसे आकर्षक हिस्से के रूप में बनी हुई है।

●क़िले में प्रवेश करते ही ब्रह्मा, विष्णु ,शिचोराय,
जगरनाथ मंदिर और भगवान शिव के तांडव नृत्य की मूर्तियां हैं।

शिवरीनारायण - ऐतिहासिक स्थल से सम्बंधित तथ्य

●महानदी , जोंक नदी एवं शिवनाथ नदी के
त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थित है जो हिंदुओं की
आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है।

निर्माता ~ हैहय वंश

निर्माण काल ~ 11वीं शताब्दी

वास्तुकला ~ वैष्णव शैली

●मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में
पहले भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा स्थापित
कराई गयी थी परंतु बाद में उस प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था।

●शिवरीनारायण मन्दिर छत्तीसगढ़ के जंजगीर-
चंपा ज़िले में स्थित प्रमुख मन्दिरों में से एक है।
शिवरीनारायण मन्दिर को लक्ष्मीनारायण मन्दिर और शिवनारायण मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।

●हिन्दू कथाओं के अनुसार शिवनारायण मन्दिर के पास ही शबरी आश्रम है जहाँ वनवास के समय श्री राम आये थे।

●माघ पूर्णिमा के दिन यहां पर भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है।

माँ दंतेश्वरी मंदिर - डंकिनी शंकिनी संगम - दंतेवाड़ा

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से करीब तीन सौ अस्सी किलोमीटर दूर दंतेवाडा नगर स्थित है। यहां के डंकिनी और शंखिनी नदियों के संगम पर माँ दंतेश्वरी का मंदिर प्रस्थापित है। पुरातात्विक महत्व के इस मंदिर का पुनर्निर्माण चालुक्य वंश के महाराजा अन्नमदेव द्वारा चौदहवीं शताब्दी में किया गया था। आंध्रप्रदेश के वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने यहां आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी और माँ भुवनेश्वरी देवी की प्रतिस्थापना की। वारंगल में माँ भुनेश्वरी माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है।
दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

●दक्षिण भारतीय वास्तुकला शैली में यह मंदिर निर्मित है।

●दंतेश्वरी मंदिर छ: सौ वर्ष पुराने मंदिरों में से एक है जो भारत की प्राचीन धरोहर स्थलों में भी गिना जाता है।

●भारत में 51 शक्ति पीठ हैं लेकिन दंतेश्वरी देवी के मंदिर को 52वाँ शक्तिपीठ माना जाता है। दंतेश्वरी मंदिर छ: सौ वर्ष पुराने मंदिरों में से एक है जो भारत की प्राचीन धरोहर स्थलों में भी गिना जाता है।

●दंतेश्वरी मन्दिर गोल बाज़ार व बस्तर पैलेस के पास स्थित एक बहुत ख़ूबसूरत मंदिर है।

●दंतेश्वरी देवी बस्तर के राजाओं की कुल देवी थी।

छ. ग. के विशेष पिछड़ी जनजातियाँ

छग में मुख्यत: 5 विशेष पिछड़ी जनजातिया थी जबकि 2012 में छग सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करके दो और जनजातियों भूंजिया व पंडो को इस श्रेणी में शामिल किया जिससे इनकी संख्या 7 हो गयी है।

(1)बैगा--कबीरधाम,बिलासपुर, कोरिया, राजनांदगाव,मुंगेली---71862

(2)पहाड़ी कोरवा-- सरगुजा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर---37472

(3)पण्डो--सूरजपुर,बलरामपुर,सरगुजा---31814

(4)कमार--गरियाबंद,धमतरी,महासमुंद,कांकेर---23288

(5)अबूझमाड़िया-नारायणपुर,दंतेवाड़ा,बीजापुर---19401

(6)भुंजिया--गरियाबंद,धमतरी---7199

(7)बिरहोर--रायगढ़,जशपुर, बिलासपुर,,कोरबा ---3034

समसामयिकी - प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में छत्तीसगढ़ अव्वल

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना की घोषणा वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 28 फरवरी 2015 को अपने वार्षिक बजट 2015-16
में की।

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के अंतर्गत दुर्घटना में मृत्यु और पूर्ण विकलांगता की स्थिति में 2,00,000 रुपये और आंशिक विकलांगता की स्थिति में 1,00,000 रुपये के बीमा लाभ का प्रावधान किया गया है। यह योजना 18 से 70 वर्ष की आयु समूह के उन लोगों के लिए है और जिनका कोई बैंक खाता हो जिसमें से ‘‘स्वतः डेबिट’’ सुविधा के जरिए प्रीमियम वसूल किया जा सके।

छत्तीसगढ़ राज्य का बलरामपुर जिला राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस के स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित:

छत्तीसगढ़ राज्य का बलरामपुर जिला राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस के स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित:

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिला प्रशासन द्वारा शासकीय स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से प्रारंभ किए गए छत्तीसगढ़ ऑनलाईन स्कूल मॉनिटरिंग सिस्टम (कॉसमॉस प्रोजेक्ट) को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस के स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने यह स्वर्ण पुरस्कार दिया।बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के सभी स्कूली शिक्षण संस्थाओं में ऑनलाईन बायोमैट्रिक निगरानी प्रणाली स्थापित कर उच्च गुणवत्ता युक्त सेवा प्रदान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कॉसमॉस प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है।इस प्रणाली के द्वारा प्रत्येक शिक्षक की उपस्थिति स्कूल में लगाए गए बायोमैट्रिक डिवाईस पर दर्ज की जाती है एवं ऑनलाईन उपलब्ध रहती है। इसके तहत शिक्षकों के अवकाश आवेदन व स्वीकृति एवं वेतन पत्रक को भी ऑनलाईन कर दिया गया है।जिले के शून्य से 18 आयु वर्ग के सभी बच्चों को 16 अंकीय आईडी प्रदान कर उनकी प्रगति की निरंतर निगरानी एवं कमजोर बच्चों के लिए विशेष अभ्यास की व्यवस्था भी इस प्रणाली में की जा रही है।इस प्रणाली के द्वारा प्रत्येक स्कूली कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाएं और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों व अति कुपोषित बच्चों की पहचान कर विशेष अभ्यास प्रारंभ किए जा रहे हैं।
●इस प्रणाली के माध्यम से जिले के बाहर पलायन करने वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाने और उनकी प्रगति की नियमित निगरानी संभव हो सकी है।
●भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग एवं इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए शासकीय संस्थाओं, शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों आदि को कुल 12 श्रेणीयों में स्वर्ण और रजत वर्गों में पुरस्कृत किया जाता है।
●इस वर्ष नागपुर, महाराष्ट्र में दिनांक 21 से 22 जनवरी को आयोजित राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन में कॉसमॉस प्रोजेक्ट को शासकीय प्रक्रियाओं की प्रगतिशील पुर्नर्निधारण के लिए स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
●छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिला प्रशासन द्वारा शासकीय स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से प्रारंभ किए गए छत्तीसगढ़ ऑनलाईन स्कूल मॉनिटरिंग सिस्टम (कॉसमॉस प्रोजेक्ट) को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस के स्वर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
●महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने यह स्वर्ण पुरस्कार दिया।बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के सभी स्कूली शिक्षण संस्थाओं में ऑनलाईन बायोमैट्रिक निगरानी प्रणाली स्थापित कर उच्च गुणवत्ता युक्त सेवा प्रदान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कॉसमॉस प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है।
●इस प्रणाली के द्वारा प्रत्येक शिक्षक की उपस्थिति स्कूल में लगाए गए बायोमैट्रिक डिवाईस पर दर्ज की जाती है एवं ऑनलाईन उपलब्ध रहती है। इसके तहत शिक्षकों के अवकाश आवेदन व स्वीकृति एवं वेतन पत्रक को भी ऑनलाईन कर दिया गया है।
●इस प्रणाली के द्वारा प्रत्येक स्कूली कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाएं और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों व अति कुपोषित बच्चों की पहचान कर विशेष अभ्यास प्रारंभ किए जा रहे हैं। इस प्रणाली के माध्यम से जिले के बाहर पलायन करने वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाने और उनकी प्रगति की नियमित निगरानी संभव हो सकी है।
●भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग एवं इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिए शासकीय संस्थाओं, शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों आदि को कुल 12 श्रेणीयों में स्वर्ण और रजत वर्गों में पुरस्कृत किया जाता है।

चित्रकूट जलप्रपात - भारत का नियाग्रा

'चित्रकूट जलप्रपात' छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में इंद्रावती नदी में स्थित है। इसे 'भारतीय नियाग्रा' के नाम से भी जाना जाता है।इसकी ऊंचाई 90 फ़ीट है।

इससे जुड़ी अन्य जानकारीयाँ -
●आकार में यह झरना घोड़े की नाल के समान है और इसकी तुलना विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा झरनों से की जाती है।

●छत्तीसगढ़ राज्य में और भी बहुत-से जलप्रपात हैं, किन्तु चित्रकूट जलप्रपात सभी से बड़ा है।
आप्लावित रहने वाला यह जलप्रपात पौन किलोमीटर चौड़ा और 90 फीट ऊँचा है।

●इस जलप्रपात की विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त लालिमा लिए हुए होता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल सफ़ेद दिखाई देता है।

●जगदलपुर से 40 कि.मी. और रायपुर से 273 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है।

●इस प्रपात से इन्द्रावती नदी का जल प्रवाह लगभग 90 फुट ऊंचाई से नीचे गिरता है।
चित्रकूट जलप्रपात बहुत ख़ूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। सधन वृक्षों एवं विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य स्थित इस जल प्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती है।

●'भारतीय नियाग्रा' के नाम से प्रसिद्ध चित्रकूट प्रपात वैसे तो प्रत्येक मौसम में दर्शनीय है, परंतु वर्षा ऋतु में इसे देखना अधिक रोमांचकारी अनुभव होता है। वर्षा में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देती है।

●आकार में यह झरना घोड़े की नाल के समान है और इसकी तुलना विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा झरनों से की जाती है। वर्षा ऋतु में इन झरनों की ख़ूबसूरती अत्यधिक बढ़ जाती है।

●जुलाई-अक्टूबर का समय पर्यटकों के यहाँ आने के लिए उचित है। चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन विराजमान हैं, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है।

●रात में इस जगह को पूरा रोशनी के साथ प्रबुद्ध किया गया है। यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को पर्यटक रोशनी के साथ देख सकते हैं।
अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएँ गिरती हैं।


छ. ग. की पद्म पुरस्कार प्राप्त विभूतियां क्रम से

छत्तीसगढ़ की पद्म पुरुस्कार प्राप्त विभूतियाँ-

1> पंडित मुकुटधर पाण्डेय -
1976 - पद्मश्री - Literature & Education

2> श्री हबीब तनवीर -
1983 (पद्मश्री) 2002 (पद्मभूषण) - Arts

3> श्रीमती तीजन बाई -
1988 (पद्मश्री) 2003 (पद्मभूषण) - Arts

4> श्रीमती राजमोहिनी देवी -
1989 - पद्मश्री - Social Work

5> श्री धरमपाल सैनी -
1992 - पद्मश्री - Social Work

6> डा. अरुण त्रयम्बक दाबके -
2004 - पद्मश्री - Medicine

7> श्री पुनाराम निषाद -
2005 - पद्मश्री - Arts

8> सुश्री मेहरुनिशा परवेज -
2005 - पद्मश्री - Literature & Education

9> डा. महादेव प्रसाद पाण्डेय -
2007 - पद्मश्री - Literature & Education

10> श्री जॉन मार्टिन नेल्सन -
2008 - पद्मश्री - Arts

11> श्री गोविन्दराम निर्मलकर -
2009 - पद्मश्री - Art

12> डॉ. सुरेन्द्र दुबे -
2010 - पद्मश्री - Literature and Education

13> श्री सत्यदेव दुबे -
2011 - पद्मभूषण - Art - Theatre

14> डॉ. पुखराज बाफना -
2011 - पद्मश्री - Medicine - Padeatrics

15> श्रीमती शमशाद बेगम -
2012 - पद्मश्री - Social Work

16> श्रीमती फुलबासन बाई यादव -
2012 - पद्मश्री - Social Work

17> स्वामी जी.सी.डी.भारती (भारती बंधू) - 2013 - पद्मश्री - Art

18> श्री अनुज(रामानुज)शर्मा -
2014 – पद्मश्री - Art - Performing Art

19> श्रीमती सबा अंजुम –
2015 - पद्मश्री - Sports

20> श्री शेखर सेन –
2015 –पद्मश्री (जन्म छत्तीसगढ़) - Art

21> श्रीमती ममता चंद्राकर -
2016 - पद्मश्री - Art and folk culture

अब तक कुल पद्म पुरुस्कार -21*

व्यापम पटवारी भर्ती परीक्षा संपूर्ण जानकारी 342 पद

आवेदन-
29 जनवरी 2016 से 08 फरवरी 2016
परीक्षा तिथि-
29 फरवरी
अधिक जानकारी के लिए इमेज ZOOM करके देखें।
सौजन्य - दक्षिण कोसल e-psc

भोरमदेव - छत्तीसगढ़ का खजुराहो

●भोरमदेव मंदिर एक बहुत ही पुराना हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है, यह छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा ज़िले में स्थित है।

●इसका निर्माण नाग राजवंश के राजा रामचन्द्र ने 7 से 11 वीं शताब्दी के मध्य करवाया था।

●देवी-देवता
शिव, गणेश

●वास्तुकला
चंदेल शैली

●भोरमदेव मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह के तीनों प्रवेशद्वार पर लगाया गया काला चमकदार पत्थर इसकी आभा में और वृद्धि करता है।

●भोरमदेव मंदिर एक बहुत ही पुराना हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है, यह छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा ज़िले में स्थित है।
भोरमदेव मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है।

●भोरमदेव मंदिर पर नृत्य की आकर्षक भाव भंगिमाँए के साथ-साथ हाथी, घोड़े, भगवान गणेश एवं नटराज की मूर्तियाँ चंदेल शैली में उकेरी गयी हैं।

●प्राकृतिक सौंदर्य की पृष्ठभूमि में, इस मंदिर को भी अपनी वास्तुकला के लिए अद्वितीय है।

मैनपाट - छत्तीसगढ़ का शिमला, छत्तीसगढ़ का तिब्बत

मैनपाट छत्तीसगढ़ का एक पर्यटन स्थल है। यह स्थल अम्बिकापुर नगर, जो भूतपूर्व सरगुजा , विश्रामपुर के नाम से भी जाना जाता है, से 75 किमी. की दूरी पर अवस्थित है। अम्बिकापुर छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे ठंडा नगर है। मैनपाट में भी काफ़ी ठंडक रहती है, यही कारण है कि इसे 'छत्तीसगढ़ का शिमला' कहा जाता है। 1962 ई. से यहाँ पर तिब्बती लोगों के एक समुदाय को भी बसाया गया है।

●मैंनपाट विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है।

●समुद्र की सतह से इसकी ऊँचाई 3,780 फीट है।

●मैनपाट की लम्बाई 28 किमी. और चौड़ाई 10-12 किमी. है।

●यह प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर और एक बहुत
ही आकर्षक स्थल है।

●'सरभंजा जल प्रपात', 'टाईगर प्वांइट' और 'मछली प्वांइट' यहाँ के श्रेष्ठ पर्यटन स्थल हैं।

●छत्तीसगढ़ के इस स्थान से ही रिहन्द एवं
मांड नदियाँ निकलती हैं।

●यहाँ पर तिब्बती का भी बड़ी संख्या में निवास है। एक प्रसिद्ध बौद्ध मन्दिर भी यहाँ है, जो तिब्बतियों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
शायद यही कारण है कि यह 'छत्तीसगढ़
का तिब्बत' भी कहा जाता है।

छ.ग. के कश्मीर के बारे में जानने के लिए क्लिक करें...

छेरछेरा - अन्न दान का महापर्व

छत्तीसगढ़ में लोकपर्व छेरछेरा त्यौहार मुख्यतः ग्रामीण अंचल में हर्षोल्लाश के साथ मनाया जाता है। छेरछेरा का त्यौहार प्रत्येक वर्ष पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्यौहार में बच्चे व जवान घर-घर जाकर धान की भिक्षा प्राप्त करते हैं , खेती किसानी से फुरसत पा चुके किसान अत्यंत हर्ष के साथ यह त्यौहार मनाते हैं। इस दिन माता अन्नपूर्णा (लक्ष्मी जी) की पूजा की जाती है।
इस त्यौहार में विभिन्न प्रकार के छत्तीसगढ़ी पकवान सभी घरों में बनाये जाते है।

इस त्यौहार के सम्बन्ध में मान्यता है की बच्चों को अन्न दान करने से मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और शायद ऐसी ही धार्मिक मान्यताएं अब तक इस लोक पर्व को जीवंत बनाएं हुए है।

चैतुरगढ़ - छत्तीसगढ़ का कश्मीर

विवरण-
'चैतुरगढ़' छत्तीसगढ़ के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। प्रसिद्ध स्थान मैकाल पर्वत श्रेणी में स्थित है। इसे 'छत्तीसगढ़ का कश्मीर' भी कहा जाता है।

ऊँचाई
समुद्र तल से लगभग 3060 फीट।

प्राचीन स्थल-
'महिषासुर मर्दिनी मंदिर'
'शंकर खोल गुफ़ा'
'श्रृंगी झरना'
'चामादहरा'

संक्षिप्त जानकारी-
चैतुरगढ़ का क्षेत्र अलौकिक होने के साथ ही
काफ़ी दुर्गम भी है। गुप्त गुफ़ा, झरना, नदी,
जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी तथा औषधीय वृक्षों
से यह क्षेत्र परिपूर्ण है।
चैतुरगढ़ छत्तीसगढ़ के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। यह क्षेत्र अनुपम, अलौकिक और प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर एक दुर्गम स्थान है। बिलासपुर-कोरबा मार्ग पर 50 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक जगह पाली है, जहाँ से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर
लाफा है। लाफा से चैतुरगढ़ 30 किलोमीटर दूर ऊँचाई पर स्थित है। चैतुरगढ़ को "छत्तीसगढ़ का कश्मीर" भी कहा जाता है।

*छत्तीसगढ़ का यह प्रसिद्ध स्थान मैकाल पर्वत
श्रेणी में स्थित है। समुद्र के तल से इसकी ऊँचाई
लगभग 3060 फीट है। यह मैकाल पर्वत श्रेणी की उच्चतम चोटियों में से एक है। चैतुरगढ़ का क्षेत्र अलौकिक गुप्त गुफ़ा, झरना, नदी, जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी तथा औषधीय वृक्षों से परिपूर्ण है। ग्रीष्म ऋतु में भी यहाँ का तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेट से अधिक नहीं होता।
इसीलिए इसे 'छत्तीसगढ़ का कश्मीर' कहा
जाता है। अनुपम छटाओं से युक्त यह क्षेत्र अत्यन्त दुर्गम भी है।

पर्यटन स्थल-
चैतुरगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में निम्नलिखित हैं-
1. आदिशक्ति माता महिषासुर मर्दिनी का मंदिर
2. शंकर खोल गुफ़ा
3. चामादहरा
4. तिनधारी
5. श्रृंगी झरना
श्रृंगी झरना इस पर्वत श्रृंखला में स्थित है।
जटाशंकरी नदी के तट पर 'तुम्माण खोल' नामक प्राचीन स्थान है, जो कि कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी। इस पर्वत श्रृंखला में
ही जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल है।
दूर्गम पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से
कई वर्षों तक चैतुरगढ़ उपेक्षित रहा।

चैतुरगढ़ क़िला-
सातवीं शताब्दी में वाण वंशीय राजा मल्लदेव ने
महिषासुर मर्दिनी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
इसके बाद जाज्वल्बदेव ने भी 1100 ई. काल में यहाँ स्थित मंदिर और चैतुरगढ़ क़िले का जीर्णोद्धार करवाया। क़िले के चार द्वार बताये जाते हैं, जिसमें सिंहद्वार के पास महामाया महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है तो मेनका द्वार
के पास है 'शंकर खोल गुफ़ा'। मंदिर से तीन
किलोमीटर दूर 'शंकर खोल गुफ़ा' का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफ़ा के अंदर शिवलिंग स्थापित है। यह कहा जाता है कि पर्वत के दक्षिण दिशा में क़िले का गुप्त द्वार है,
जो अगम्य है।

(TRICK) राज्यपालों के नाम क्रम से याद करने की ट्रिक

Trick ~ दिल सुई शेर

दि - दिनेश नंदन सहाय
ल - ले.जनरल के.एम. सेठ
सु - सुशील कुमार शिंदे (कार्यवाहक)
ई - ई एस एल नरसिम्हन
शे - शेखर दत्त(सबसे लंबा कार्यकाल)
र - रामनरेश यादव(कार्यवाहक)

और अभी बलराम जी दास टंडन

छ. ग. प्रमुख तथ्य सौजन्य-जनसम्पर्क विभाग छत्तीसगढ़

                छत्तीसगढ़-प्रमुख तथ्य

राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के जरिए छत्तीसगढ़ एक नवम्बर 2000 को नया राज्य बना।
छत्तीसगढ़ राज्य का क्षेत्रफल लगभग एक लाख 35 हजार 361 वर्ग किलोमीटर है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का 9वां और जनसंख्या की दृष्टि से 16 वां बड़ा राज्य है।
इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत इलाका वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्रफल के हिसाब से छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बड़ा राज्य है।
छत्तीसगढ़ की सीमाएं देश के छह राज्यों को स्पर्श करती हैं। इनमें मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ के सरहदी इलाकों में सीमावर्ती राज्यों की सांस्कृतिक विशेषताओं का भी प्रभाव देखा जा सकता है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या दो करोड़ 55 लाख 40 हजार 196 है। इसमें एक करोड़ 28 लाख 27 हजार 915 पुरूष और एक करोड़ 27 लाख 12 हजार 281 महिलाएं हैं। प्रदेश की ग्रामीण आबादी लगभग एक करोड़ 96 लाख 03 हजार 658 और शहरी आबादी 59 लाख 36 हजार 538 है।छत्तीसगढ़ में जनसंख्या का घनत्व 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, जबकि भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक है।पुरूष और स्त्री जनसंख्या में लैंगिक अनुपात के मामले में छत्तीसगढ़ का स्थान देश में दूसरा है। यहां प्रति एक हजार पुरूषों के बीच स्त्रियों की संख्या 991 है।
हमारा बिलासपुर रेलवे जोन देश का सबसे ज्यादा माल ढोने वाला रेलवे जोन है, जो भारतीय रेलवे को उसके कुल वार्षिक राजस्व का छठवां हिस्सा देता है।
खनिज राजस्व की दृष्टि से देश में दूसरा बड़ा राज्य है।
वन राजस्व की दृष्टि से तीसरा बड़ा राज्य है।राज्य के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा बहुमूल्य वनों से परिपूर्ण है।
देश के कुल खनिज उत्पादन का 16 प्रतिशत खनिज उत्पादन छत्तीसगढ़ में होता है।छत्तीसगढ़ में देश का 38.11 प्रतिशत टिन अयस्क, 28.38 प्रतिशत हीरा, 18.55 प्रतिशत लौह अयस्क और 16.13 प्रतिशत कोयला, 12.42 प्रतिशत डोलोमाईट, 4.62 प्रतिशत बाक्साइट उपलब्ध है।छत्तीसगढ़ में अभी देश का 38 प्रतिशत स्टील उत्पादन हो रहा है। सन 2020 तक हम देश का 50 फीसदी स्टील उत्पादन करने लगेंगे।
छत्तीसगढ़ में अभी देश का 11 प्रतिशत सीमेन्ट उत्पादन हो रहा है, जो आगामी वर्षों में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगा।
राज्य में अभी देश का करीब 20 प्रतिशत एल्युमिनियम उत्पादन है, वह निकट भविष्य में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ में भारत का कुल 16 प्रतिशत खनिज उत्पादन होता है, अर्थात साल भर में खनिज से बनने वाली हर छठवीं चीज पर छत्तीसगढ़ का योगदान होता है।
छत्तीसगढ़ में देश का लगभग 20 प्रतिशत आयरन ओर है, यानी हर पांचवें टन आयरन ओर पर छत्तीसगढ़ का नाम लिखा है।देश में कोयले पर आधारित हर छठवां उद्योग छत्तीसगढ़ के कोयले से चल सकता है। छत्तीसगढ़ में देश के कुल कोयले के भण्डार का लगभग 17 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में है।डोलोमाईट पर आधारित हर पांचवा उद्योग छत्तीसगढ़ पर निर्भर है, क्योंकि हमारे पास देश के कुल डोलोमाईट का लगभग 12 प्रतिशत भण्डार है।खनिज के राज्य में वेल्यू एडीशन की हमारी नीति के कारण देश का 27 प्रतिशत यानी एक तिहाई लोहा छत्तीसगढ़ में बनता है।हम देश में स्ट्रक्चरल स्टील के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। हर साल पांच मिलियन टन हम देश को देते हैं। आप कह सकते हैं कि आज भारत का हर तीसरा घर, तीसरा पुल, तीसरा स्ट्रक्चर छत्तीसगढ़ के लोहे से बनता है।हमारी धरती के बाक्साइट की बदौलत आज देश का सबसे बड़ा एल्युमिनियम प्लांट बाल्को, कोरबा में चल रहा है और इस तरह देश के सबसे बड़े एल्युमिनियम उत्पादक भी है।देश के हर बड़े उद्योग समूह का पसंदीदा स्थान छत्तीसगढ़ बन रहा है। इसलिए आज चाहे टाटा, एस्सार, जे.एस.पी.एल., एन.एम.डी.एस. स्टील प्लांट हों या ग्रासिम, लाफार्ज, अल्ट्राटेक, श्री सीमेंट जैसे सीमेंट कारखाने सब छत्तीसगढ़ में हैं।छत्तीसगढ़ में इस समय स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम एवं ऊर्जा क्षेत्रों में लगभग एक लाख करोड़ रूपए का निवेश प्रस्तावित है।औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के साथ हमने ग्रीन टेक्नालाॅजी पर भी जोर दिया है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। इस धान के कटोरे में धान की भूसी से भी 220 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है।बायोडीजल उत्पादन और उसके लिए रतनजोत के वृक्षारोपण में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी है।वनौषधियों के प्रसंस्करण तथ एग्रो इंडस्ट्रीज की स्थापना हेतु विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।बीते साल पूरे भारत में सीमेन्ट की औसत खपत 10 प्रतिशत बढ़ी है तो छत्तीसगढ़ में 12 प्रतिशत बढ़ी है। बीते पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में सीमेन्ट की खपत दोगुनी हो गयी है। इससे पता चलता है कि राज्य में अधोसंरचना निर्माण के काम की गति कितनी तेज हुई है।
आज जब देश के अन्य राज्य भयंकर बिजली संकट और घण्टों की बिजली कटौती से जूझ रहे हैं, उस दौर में छत्तीसगढ़ देश का ऐसा अकेला राज्य है, जिसने आधिकारिक तौर पर बकायदा 'जीरो पावर कट स्टेट' होने की घोषणा की है।प्रदेश की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 1360 मेगावाट से बढ़कर 1924 मेगावाट हो गयी है। राज्य में नये बिजली घरों के निर्माण की कार्ययोजना प्रगति पर है। पिट हैड पर ताप बिजलीघर लगाने वालों का छत्तीसगढ़ में स्वागत है, लेकिन उसके लिए उन्हें 7.5 प्रतिशत बेरीएबल कास्ट पर पहले हमें बिजली देना होगा। उत्पादन पर पहला 30 फीसदी का अधिकार हमारा होगा। राज्य में 50 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घरों हेतु एमओयू किए जा चुके हैं।आगामी 7-8 वर्षों में कम से कम 30 हजार मेगावाट क्षमता के बिजली घरों से उत्पादन प्रारंभ हो जाएगा। उनसे मिलने वाली हमारे हिस्से की बिजली बेचकर हमें एक मोटे अनुमान के अनुसार 10 हजार करोड़ रूपए से अधिक की अतिरिक्त आय हर साल होने लगेगी। ऐसे उपायों से शायद हम छत्तीसगढ़ को टैक्स-फ्री राज्य भी बना सकेंगे।हमारे राज्य की ऊर्जा राजधानी कोरबा आने वाले दिनों में 10 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने लगेगी, जिसके कारण कोरबा जिला देश का सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक जिला और देश की ऊर्जा राजधानी बन जाएगा।छत्तीसगढ़ में सभी वर्गों के बिजली उपभोक्ताओं के साथ उद्योगों को भी देश में सबसे सस्ती दर पर बिजली मिल रही है।राज्य बनने के पहले छत्तीसगढ़ के किसानों का मुश्किल से पांच-सात लाख मीटरिक टन धान ही हर साल खरीदा जा सकता है। लेकिन राज्य सरकार ने वर्ष 2010-11 में 51 लाख मीटरिक टन धान खरीद कर किसानों को 5000 करोड़ रूपए धान की कीमत और बोनस के रूप में दिए ।आजादी के बाद 56 सालों में सिर्फ छत्तीसगढ़ के किसानों को 72 हजार पम्प कनेक्शन मिले थे। लेकिन बीते सात सालों में 02 लाख 67 हजार से अधिक पम्प कनेक्शन दिए गए हैं।किसानों को साल भर में छह हजार यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है।किसानों को मात्र तीन प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण दिया जा रहा है। पहले किसान साल भर में मात्र 150 करोड़ रूपए का ऋण ले पाते थे, वह अब बढकर 1500 करोड़ रूपए हो गया है।जब राज्य बना था, यहां की सिंचाई क्षमता कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर लगभग 32 प्रतिशत हो गयी है।छत्तीसगढ़ गठन के वक्त, अविभाजित मध्यप्रदेश के हिस्से के रूप में छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्र के लिए कुल बजट प्रावधान पांच हजार 704 करोड़ रूपए था, जो अलग राज्य बनने के बाद क्रमशः बढ़ता गया और अब दस सालों में 30 हजार करोड़ रूपए से अधिक हो गया है।प्रति व्यक्ति आय की गणना, वर्ष 2000-2001 में प्रचलित भावों में प्रति व्यक्ति आय 10 हजार 125 रूपए थी, जो वर्तमान में बढ़कर 44 हजार 097 रूपए(अनुमानित) हो गयी।विकास का एक पैमाना राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ने को भी माना जाता है। विगत पंाच वर्षों में लाखों लोगों को रोजगार मिला है।हमने शासकीय नौकरियों में भर्ती से प्रतिबंध हटा दिया। विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को भरने का समयबद्ध अभियान चलाया। इसके कारण करीब एक लाख लोगों की भर्ती विभिन्न विभागों में हुई है।करीब एक लाख शिक्षाकर्मियों और 25 हजार पुलिस कर्मियों की भर्ती की गयी। अनुकम्पा नियुक्ति के तहत हजारों पद भरे गए। करीब 20 हजार दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित किया गया।अनुसूचित जाति-जनजाति के युवाओं को रोजगार के नये अवसर देने के लिए निःशुल्क पायलट तथा एयर होस्टेस प्रशिक्षण योजना संचालित की जा रही है। इसके तहत पायलट प्रशिक्षण पर प्रति व्यक्ति 13 लाख रूपए तथा एयर होस्टेस प्रशिक्षण के लिए प्रति व्यक्ति एक लाख रूपए राज्य शासन द्वारा वहन किया जाता है।राज्य में स्थापित नए उद्योगों में करीब 50 हजार लोगों को रोजगार मिला। ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं में 25 लाख से अधिक परिवारों को रोजगार दिया गया है।बेरोजगार स्नातक इंजीनियरों को लोक निर्माण विभाग में बिना टेण्डर के ही निर्माण कार्य मंजूर करने की प्रक्रिया अपनाई गयी है।हम छत्तीसगढ़ के 32 लाख 53 हजार गरीब परिवारों को एक रूपए और दो रूपए प्रतिकिलो में चांवल दे रहे हैं।हर माह प्रति परिवार दो किलो आयोडाईज्ड नमक निःशुल्क दे रहे हैं।सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन दुकानों को निजी हाथों से वापस लेकर सहकारिता आधारित सस्थाओं को सौंपा गया है। हर माह की सात तारीख तक राशन बांटने की व्यवस्था, सम्पूर्ण प्रणाली के कम्प्यूटरीकरण, राशन सामग्री को दुकानों तक पहुंचाने के लिए द्वार प्रदाय योजना, एसएमएस, जीपीएस प्रणाली तथा वेबसाइट के उपयोग से निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की गयी है। छत्तीसगढ़ को केन्द्र व अन्य राज्यों ने रोल माॅडल के रूप में स्वीकार किया है।
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हाईस्कूल जाने वाली हर वर्ग की गरीब बालिकाओं को निःशुल्क सायकलें दी जा रही है। निःशुल्क कम्प्यूटर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है।
कुपोषण दूर करने के लिए 35 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों और 75 हजार महिला स्व-सहायता समूहों को भागीदार बनाया गया है। 13 हजार कुपोषित बच्चों को समाज सेवी संस्थाओं को गोद दिया गया है। पूरक पोषण आहार योजनाओं में महिलाओं को भागीदार बनाया गया है।विभिन्न प्रयासों से राज्य में कुपोषण की दर 61 से घटकर 52 हो गयी है।राज्य में शिशु मृत्यु दर सन 2000 में 79 प्रति हजर थी, जो घटकर 54 हो गयी है।राज्य में मातृ मृत्यु दर सन 2000 में 601 प्रति लाख थी, जो घटकर लगभग 335 हो गयी है।
बच्चों को हद्यरोग से राहत दिलाने के लिए मुख्यमंत्री बाल हद्य सहायता योजना संचालित की जा रही है। जिसके तहत 1800 से अधिक बच्चों का सफल आॅपरेशन किया जा चुका है, उन्हें एक लाख 80 हजार रूपए तक की सहायता प्रत्येक आॅपरेशन के लिए दी जाती है।
मूक-बधिर बच्चों के उपचार के लिए नई योजना शुरू की गयी है, जिसके तहत काॅक्लियर इम्प्लांट हेतु पांच लाख रूपए से अधिक तक की मदद प्रत्येक व्यक्ति को दी जा सकती है।
महिलाओं को अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।
महिलाओं के नाम से जमीन खरीदी करने पर रजिस्ट्री में दो प्रतिशत की छूट दी जा रही है।
महिला स्व-सहायता समूहों को 6.5 प्रतिशत की आसान ब्याज दर पर ऋण दिया जा रहा है।
34 हजार से भी अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को निःशुल्क सायकल दी जा रही है।
गरीब परिवारों की बालिकाओं, निःशक्त युवतियां को विवाह के लिए आर्थिक मदद की जा रही है।
शहरों की छोटी बस्तियों में रहने वाली महिलाओं को सार्वजनिक नलों में होने वाली दिक्कतों से बचाने के लिए भागीरथी नल-जल योजना के तहत उनके घर पर निःशुल्क नल कनेक्शन दिए गए।
12 लाख से अधिक गरीब परिवारों को प्रतिमाह 30 यूनिट तक निःशुल्क विद्युत आपूर्ति की सुविधा दी गयी है।
नया राज्य बनने से ही नई राजधानी स्थापित करने का अवसर मिला है। इसके कारण हम छत्तीसगढ़ मंे नया रायपुर नाम से एक ऐसा शहर बसा रहे हैं, जो दुनिया के सबसे सुविधाजनक और सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल होगा।

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