loading...

छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ भाग -1 (01 से 30)

१. खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय।

इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति खेती रहने पर
भी पैसों के लिए, परदेश जाता है उसका जन्म
ही बेकार या निरर्थक है।

२. खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास

जब किसान तास खेलता रहता है, उसकी
खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है।
इस हाना के माध्यम से किसान अपने बच्चों को बचपन से तास खेलने से रोकते रहे। तास ही एक ऐसा खेल है जो कि लोगों को आलसी बना देता है। जबकि खेती करने वालों को बहुत ही
कर्मठ होना जरुरी है।

३. खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना।

इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पोशाख पर ज्यादा ध्यान देता है, अपने पोशाख कि स्वच्छता पर ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देते हैं। ठीक उसी तरह जैसे एक ब्राह्मण एक गांव को बिगाड़ता है।

४. बरसा पानी बहे न पावे,तब खेती के मजा देखावे

इस हाना से पता चलता है कि कितने ज्ञानी
है हमारे छत्तीसगढ़ के किसान, आजकल
औयाटर हारभेेस्टिगं कि बात चारों ओर हो रही
है - और ये हाना न जाने कितने पहले से प्रचलित है।

५. आषाढ़ करै गांव - गौतरी, कातिक खेलय जुआं। पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका लुआ।

जो किसान आषाढ़ महीने में गांव-गांव घूमता रहा और कार्तिक महीने में जुआ खेलता रहा, उसे उसके पड़ोसी व्यंंग करते हुये पूछते हैं
""कितना धान हुआ।'' यह हाना छत्तीसगढ़
लोक जीवन में शुरु से किसानों के बच्चों को आषाढ़ कार्तिक महीने के बारे में बताते हैं - इस
महीनों में क्या नहीं करना चाहिये, उसके बारे में उन्हें शिक्षा देती है।

६. तीन पईत खेती, दू पईत गाय।

इसका अर्थ है कि रोजाना खेत की तीन बार
सेवा करनी चाहिए और गाय की दो बार सेवा
होनी चाहिये। खेत और गाय जो हमारा
सहारा है, उसे हमें सेवा करनी चाहिये।

७. अपन हाथ मां नागर धरे, वो हर जग मां खेती करे।

जो व्यक्ति खुद हल चलाता है, वही
व्यक्ति अच्छा खेती कर सकता है।

८. कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर -

इस हाना में व्यंग, दुख दोनों ही छिपी हैं - कलियुग में लड़का आॅफिस में काम करने जाता है और उसका बूढ़ा बाप खेत मे हल चलाता रहता है।

९. भाठा के खेती, अड़ चेथी के मार

इस हाना में बं भूमि की खेती के साथ गरदन
की चोट की तुलना की गई है। इस हाना का अर्थ है कि ये दोनों ही कष्टदायक होता है - बं भूमि की खेती और गरदन की चोट।

१०. जैसन बोही , तैसन लूही

इस हाना में वही सत्य को दोहराया गया है
जिसे गीता में महत्व दिया गया है - कर्म के
अनुसार फल मिलता है।

११. तेल फूल में लइका बढे, पानी से बाढे धान
खान पान में सगा कुटुम्ब, कर वैना बढे किसान

इस हाना में बड़े सुन्दर तुलनात्मक रुप में जिन्दगी के हर पहलु को दिखाया गया है। बच्चा बढ़ेगा जब तेल फूल हो। इसी तरह पानी से धान और खाने पीने से कुटम्बी बढ़ते है। उसी तरह किसान तभी बड़ता है जब वे कर्मठ हो।

१२. तेली के बइला ला खरिखा के साथ,
धानी का जो बैल होता है वह चारा घर में जाने
वाले बैलों के झुंड को देखता है और उसमें शामिल होना चाहता है। धानी में बन्ध नहीं रहना
चाहता।

१३. गेहूं मां बोय राई, जात मां करे सगाई।

गेहूं के साथ बोना चाहिये सरसों और उसी
तरह विवाह अपनी जाति में करना चाहिये।

१४. बोड़ी के बइल, घरजिया दमाद मरै चाहे बाचै, जोते से काम।

जिस तरह मंगनी के बैल की स्थिति
अच्छी नहीं होती है। ठीक उसी तरह घरजवाई की स्थिति अच्छी नहीं होती।

१५. रेंसिग नइ रेंसिग भेड़ फोरत।
मर-मर मरै बदवा, बांधे खाये तुरंग।

बैल तो मरते दम तक मेहनत करता रहता है।
मेहनत करने से ही बैल को खाना दिया जाता।
बहुत मेहनत करने के बाद ही बैल खाता है। और उधर धोड़ा-जबकि बंधा रहता है, कुछ नहीं करता है, फिर भी उसे खाना मिलता है। यह हाना छत्तीसगढ़ की स्थिति को दिखा रहा है जहाँ बैल के कारण ही जिन्दगी चल रही है।

१६. डार के चूके बेंदरा अऊ, असाढ़ के चूके किसान सही समय में कार्य करने के लिए कहा गया है इस हाना में नहीं तो वही हालत होगी जो एक बन्दर की होती है जो डाल को पकड़ नहीं पाया, या उस किसान की जिसने आषाढ़ में गलती की।

१७. बोवै कुसियार, त रहे हुसियार

जो किसान गन्ना बोता है, उसे बहुत ही
होशियार रहना पड़ता है क्योंकि गन्ने को जितनी ज़रुरत है उतना ही पानी देना पड़ता है।

१८. पूख न बइए, कूट के खइए

अगर सही समय धान नहीं बोता है, तो किसान को कूटकर खाना पड़ता है।

१९. एक धाव जब बरसे स्वाति , कुरमिन पहिरे सोने के पाती यह हाना नक्षत्र सम्बन्धी है। इसका
अर्थ है कि अगर स्वाति नक्षत्र में एक बार बारिस हो जाये तो फसल अच्छी होती है।

२०. धान-पान अऊ खीरा , ये तीनों पानी के कीरा इस हाना के माध्यम से बच्चे भी जान जाते है कि धान पान और खीरे के लिए बहुत मात्रा में
पानी ज़रुरी है।

२१. झन मार फुट-फुट, चार चरिहा धान कुटा

छत्तीसगढ़ है धान का कटोरा इसी लिये धान
सम्बन्धी अनेक लोकोक्तियाँ यहाँ प्रचलित है।
इस हाना में कह रहे हैंै कि धान कूटते वक्त
ध्यान दो और बात करके समय मत नष्ट करो।

२२. जौन गरजये, तौन बरसे नहिं।

यह हाना से सभी लोग परिचित है। जो बादल
गरजता है, वह बरसता नहीं।

२३. संझा के झरी , बिहनियां के झगरा

सुबह अगर झगड़ा शुरु होता है तो वह दिनभर
चलता रहता है। और शाम को अगर बारिस शुरु
होती है तो रातभर होती रहती है।

२४. राम बिन दुख कोन हरे , बरखा बिन सागर कौन भरे

भगवान अगर साथ न हो तो दुख कैसे धटेगा। बारिस अगर नहीं होती हैं तो सागर को कौन भरेगा।

२५. पानी मां बस के , मगर ले बैर

ये हाना सभी अंचलो में प्रचलित है। बंगाल में,
बिहार में। इसका अर्थ है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से लड़ाई मोल लेना।

२६. पानी गये पार बाधंत है।

सही समय अगर कार्य न किया जाये तो उसका
परिनाम क्या होता है उसी के बारे में यह हाना प्रचलित है। पानी निकल गया और उसके बाद बाँध बाँधते रहो।

२७. पानी पीए छान के, गुरु बनावै जान के

पानी छानकर अगर नहीं पीया तो बीमारी होती है। उसी तरह किसी को अगर गुरु बनाओ तो पहले अच्छे से जान लो|

२८. आगू के भैंसा पानी पाए , पिछू के चिखला

जो भैंस आगे आगे जाती है, वह भैंस पानी पीती है, पर जो पीछे पीछे आती है, उसे केवल कीचड़
ही मिलता है।

२९. जियत पिता मां दंगी दंगा , मरे पिता पहुंचावै गंगा

इस हाना के माध्यम से बुजुर्गो के साथ कैसे बर्ताव किया जाता, उसे सामने लाया गया है। यह व्यंग के रुप में कहा गया है कि जब पिता जी थे, तब तो उनके साथ बुरी तरह पेश आते थे, उनपर चिल्लाते थे। अब जब वे नहीं रहे, उन्हें गंगा पहुँचाने के लिए व्यवस्था किया जा रहा है। अर्थात पितृभक्त होने का ढोंग या दिखावा किया जा रहा है।

३०. नदिया नहाय त सम्भुक पाय , तरिया नहाय त आधा कुआ नहाय त कुछ न पाय, कुरिया नहाय त ब्याधा

अगर नदी में स्नान करो तो पूरा पुण्य मिलेगा। तालाब में स्नान करने से आधा पुण्य मिलेगा। कुएँ में स्नान करने से कुछ नहीं मिलेगा। धर में स्नान करने से तो बीमारी हो जो जाएगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

loading...