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छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ भाग - 02 (31-60)

३१. धर कथे आ-आ,नदिया कथे जा-जा

धर हमसे आने के लिए कहता है। और नदिया
हम से जाने के लिए कहती है।

३२. दहरा के मछरी अब्बर मोठ।

इसका अर्थ है कि गहरे पानी की जो मछली हमें मिल नहीं पाती, वह बड़ी मोटी लगती है। अर्थात जो चीज़ हमें मिल नहीं पाती, वह हमेशा लोभनीय लगती है।

३३. लुवाठी में तरिया,कुनकुन नई होय।

तरिया याने तालाब। तालाब का पानी एक जलती लकड़ी से गर्म नहीं होता है। इसका अर्थ है कि बड़ा काम कोई छोटी वस्तु से नहीं होता।

३४. महानदी के महिमा, सिनाथ के झोल।
अरपा के बारु अऊ खारुन के सोर।

महानदी की महिमा, शिवनाथ नदी की चौड़ाई, अरपा नदी का रेत और खारुन नदी के पानी का बहुत से स्रोत प्रसिद्ध है।
हर व्यक्ति अपनी कोई खास बात के लिए प्रसिद्ध
होता है।

३५. पहार हर दूरिहा, ले सुग्धर दिखथे।

जब हम पहाड़ दूर से देखते है, तो बहुत
सुन्दर लगता है। पर नज़दीक जाने से पता चलता है कितना कठिन है पहाड़ पर चढ़ना।

३६. राई के परवत, अउ परवत के राई।
एदे बूता कौन करे, डौकी के भाई।।

छोटी बात को बढ़ा चढ़ा कर कहने कि आदत साले (स्री के भाई) में ही होती हऐ।

३७. बहारी लगाय, आमा के साध नइ भरइ।

अगर हम बबूल लगाये तो बबूल ही हमें
मिलेगा। आम खाने की इच्छा पूरी नहीं
होगी।

३८. रुहा बेंदरा बर पीपर अनमोल।

जो बन्दर बहुत लोभी है, उसके लिए
पीपल का फल ही बहुत अनमोल है।

३९. का हरदी के जगमग, का टेसू के फूल।
का बदरी के छइहां, अऊ परदेसी के संग।।

हल्दी का रंग, टेसू फूल की लालिमा, बादल
का छाँह और परदेशी का साथ - ये सब बहुत
ही कम समय के लिए होता है। अच्छी समय बहुत कम समय के लिए होता है।

४०. हाथ न हथियार,
कामा काटे कुसियार।

गन्ने को काटने कि लिए हथियार चाहिये। अगर
हथियार ही न हो, तो गन्ना कैसे काटा जाये।

४१. तेंदू के अंगरा
,
बरे के न बुताय के

तेंदू की लकड़ी ऐसी लकड़ी है
जो न तो जलती है, न बुझती है।

४२. केरा कस पान हालत है।

केले के पत्ते के साथ कमज़ोर व्यक्ति की तुलना
की गई है। केले के पत्ती जैसै हिलता रहता है, कमजोर व्यक्ति का मन उसी प्रकार अस्थिर होता रहता है। स्थिर नहीं होता है।

४३. तुलसी मां मुतही
,
तउन किराबे करही।

तुलसी पर अगर कोई पिशाब करता तो उसे कोड़े जरुर लगेंगे। अर्थात अच्छे लोगों को जो सताता है, उसे भोगना पड़ता है।

४४. मंगल छूरा, बिरस्पत तेल
,
बंस बुड़े जे काटे बेल।

इस हाना में छत्तीसगढ़ी लोगों का अंधविश्वास
दिखाया गया है लेकिन बेल का पेड़ काटने के बारे में जो कहा गया है, वह इसीलिए ताकि लोग उसे न काटे। अंधविश्वास किस तरह पेड़ पौधों को रक्षा करता था। यह इससे ज़ाहिर होता है। बाल मंगल को काटने से गुरुवार को तेल लगाने से और बेल का पेड़ काटने से वंश नष्ट हो जाता है।

४५. एक जंगल मां दू ठिन बाध नइ रहैं

यह हाना हमारे देश में हर प्रान्त में प्रचलित
है एक ही जंगल में दो बाध नहीं रहते। अर्थात, एक ही जगह में दो शक्तिशाली व्यक्ति नहीं रह सकते।

४६. बाबा घर मां
,
लईकोरी बन मां।

इस हाना के माध्यम से आलसी पति को व्यंग किया जाता है। आलसी पति घर में आराम कर रहा है जबकि पत्नी निरन्तर काम कर रही
है। यहां कहा गया है पत्नी बन मां अर्थात जंगल में। जंगल में लकड़ी काटने के लिए जाती हैं पत्नियां।

४७. हपटे बने के पथरा
,
फोरे घर के सीला।

जंगल में किसी पत्थर से ठोकर लगी और घर वापस आकर सिल को फोड़ रहा है। किसी का गुस्सा किसी और पर उतार रहा है।

४८. हंडिया के एक ठन सित्था हट् मरे जाथे।

चावल पकाने वक्त हंडी का एक चावल देखकर
पता चलता है कि चावल पका है कि नहीं।
किसी व्यक्ति की एक ही उदाहरण से पता चलता है वह कैसा व्यक्ति है।

४९. केरा, केकेकरा, बीछी बांज, ए मन के जनमे ले नास।

इसका अर्थ है कि एक बार फल लगने से केला और बांस का पेड़ नष्ट हो जाते हैं। ओर केकड़ा और बिच्छू एक बार जनम देने के बाद मर जाते हैं।

५०. चलनी मां गाय दुहै करम ला दोस दे।

जिस तरह गाय को चलनी में दुहना मुर्खता है उसी तरह कोई काम गलत तरीके से करने के बाद भाग्य को दोष देना मुर्खता है।

५१. जिहां गुर तिहां चाटी।

जो लोग बहुत स्वार्थी है वे वही पहुँच जाते है जहाँ उनका कोई लाभ हो। वह जगह कितनी भी बूरी क्यों न हो।

५२. ठिनिन-ठिनिन घंटी बाजै, सालिक राम के थापना। मालपुवा झलका के, मसक दिए अपना।।

ये हाना उन लोगों के बारे में है जो दूसरो की
सहायता लेते है किसी काम को करने के लिए,
और जैसे ही काम खत्म हो जाये, वे लाभ को
खुद हड़प कर ले जाते है।

५३. कब बबा मरही त कब बरा खावो।

किसी के मृत्यु के पश्चात जब श्राद्ध होना है तो स्वादिष्ट भोजन बनती है। यहाँ इन्तज़ार किया
जा रहा है कि कब बबा कि मृत्यु हो, और स्वादिष्ट भोजन खाने को मिले।

५४. थूंके थूंक मां लडुवा बांधे।

इसका अर्थ है कि जिस तरह थूक के लड्डू नहीं बनते, उसी तरह कोई काम मेहनत के बिना नहीं होता।

५५. छत्तीसगढ़ के खेड़ा, मथुरा का पेड़ा

जिस तरह मथुरा के पेड़ा प्रसिद्ध है उसी तरह छत्तीसगढ़ के खेड़ा। खेड़ा एक प्रकार की सब्ज़ी है। हर जगह किसी न किसी कारन के लिए प्रसिद्ध है।

५६. फोकट के चिवड़ा, भरि-भरि खाये गला।
जो चीज़ बिना मेहनत करके मिलता है उसका
दुरुपयोग करना। जैसे चिवड़ा ज्यादा खाना ठीक
नहीं है। पर जब किसी फूकट में चिड़ा मिला तो ज्यादा खाकर तबियत खराब कर दिया।

५७. बड़े बाप के बेटी
धीव बिन खिचरी न खाय,
संगत पड़े भोलानाथ के
कंडा बिनत दिन जाय।

इसका अर्थ है सब दिन एक जैसा नहीं होता। जैसे अमीर व्यक्ति की बेटी जो धी के बिना खिचड़ी नहीं खाती थी, अगर उसकी शादी शिव जैसे व्यक्ति सो हो, तो उसे हर प्रकार का काम करना पड़ता है।

५८. अपन बेटडा लेड़वे नीक
गेहुं के रोटी टेड़गे नीक।

अपना बेटा अगर बेवकुफ भी हो, ता भी अच्छा लगता है। जैसै गेहूं की रोटी अगर टेढ़ी भी हो तो स्वादिष्ट लगता है।

५९. बिन रोए दाई दूध नई पियावै।

जब तक हम अपना समस्यायें व्यक्त नहीं करेंते, सहायता नहीं मिलती। मा भी उसी वक्त दुध पिलाती है जब बच्चा रोता है।

६०. ररुहा ला भाते भात।

जो भुखा है, उसे तो चारों ओर भात ही भात दिखता है। जो चीज़ हमें जरुरत है। वह चीज़ हमें चारों ओर दिखता है। अर्थात हम उसी के बारे में जो सोचते रहते है।

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